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संदेसो

ग्राम-गरिमा
दूहा
मुलकाई गावां मही, आखो जन आधार।
हरियाली आच्छी हवा, अपणायत आगार।।1।।
पालो चलणो पंथ में, दूध दही घी दौर।
सुध भोजन मिलवे सदा, हिव बिच खात हिलौर।।2।।
मजबूती मन मांयनैं, पुरसारथ तन पाय।
अन उपजावे गांव इल, आधारां जन आय।।3।।
गरब करे न गांव रा नहीं दिखावो नाम।
सादै जीवण संचरै, चित न संवारे चाम।।4।।
ऊठै तड़के आदमी, तेजो गांण तयार।
खात राल खेतां खड़ै, धरणी आसा धार।।5।।
पंछी बोले प्रात रा, कांक़ड़ करे किलोल।
आणंद सुरगां आणवे, छिबी गांव चित छोल।।6।।
घट्टी मांडै गोरड़ी, लहरां टाबर लेत।
बाबो बैठो बारणै, चित में भगवत चेत।।7।।
तोड़त खूँटी टोगड़ो, गोरां रांभत गाय।
चरी लेय जिम चंचला, ऊभी कामण आय।।8।।
भार्या करे भिलोवणो, झेरण देती झट।
माखण टाबर मांगवे, घाल्यां डबरै घाट।।9।।
चुल्लो झट चेतायने, परणी रोट पकाय।
बाटां जोवे बालमो, सांची भूख सताय।।10।।
कांकड जाती कामणी, तन पलकाती तेज।
इल पर जांणक अपछा, भगवत दीधी भे।।11।।
बिखरे पुस्पज बोलतां, दामण हंदी देह।
जीमावै खेतां जिकी, नैणां बरसत नेह।।12।।
कुरती गोटा कांचली, उन्नत जिमे उरोज।
लहंगौ चमकत लूगड़ी, चित धार्यां वधु चोज।।13।।
नथछिब थाई नाक रो, झूमर कानां जौर।
तरुणी रे गल तेवटो, कटि छाजै कण दौर।।14।।
मितभासी बोले मृदल, सरल सभावां सार।
गुण सिलंवती गोरड़ी, चोखो आपण चार।।15।।
सिर साफो धोतो धवल, आच्छी अंगरखाीह।
मुरकी कानां मांयनै, दीपै नराई दीह।।16।।
तन गठीलौ पोरस तप, मूँछां जबर मरोड़।
घण सोभा नर गांव रां, ठावी भारत ठोड़।।17।।
जांणां बत्रा जोव सूँ, मेह पामाणा मान।
आन बान गांवां अधिक, जुरै घणा जुजमान।।18।।
पोलां बैठा पामाणा, जुड़ै हताई जौर।
हुंकारा देवे हरख, देखो गांवां दौर।।19।।
काम नहीं खोटी करै, अंवेरे पसु आर।
फोरा कामा न फसे, सोरो ग्राम संसार।।20।।
रूत आच्छी गांवा रमें, बाली लगे बसंत।
आच्छी लगे उनालियां, पाला बहतां पंत।।21।।
ग्रीखम गरिमां गांव री, तपती तावड़ तेज।
वृखा रे सरणै वियां, जानवरां नर्ह जेज।।22।।
निठियो पांणी नाडियां, तर तर सुसै तलाब।
मुसकल गांवां मरुधरा, भणवे ग्रीखम भाव।।23।।
बलती बाजै बारणै, लागै लूंबां लार।
मुरधर गांवां मानखो, धीरज लेवे धार।।24।।
बरसाल आभां बणै, साधन आणद सोय।
गिणत चौमासे गांव री, हमें सुरग मस होय।।25।।
खेत हरा किरसांण खुस, गरबे पसुवां गौर।
चौमासे गांवां चहल, देखो मरूधर दौर।।26।।
काती पाके काकड़ी, मीठा हुवै मतीर।
बोर पके घण बोरड़ी, सजै दिवाली सीर।।27।।
कांधै राखै कामलो, दिन सारै सरदीह।
हाजर कऊं हताईयां, सुध बुध लेवे सीह।।28।।
धवल बैल जौते धरा, नसल भली नागौर।
कोर हियो किरसांण रो नारया चमके नौर।।29।।
पुर सारथ सूं पलटवे, तन महनत, तकदीर।
महनत सूं अनधन मिलै, सुख सातूं में सीर।।30।।
आच्छी फुलवासी अवर, सांगरियो रो साग।
कैर निरोग काय नै, भाग्यां लिखिया भाग।।31।।
बड़ी राबोड़ी राबड़ी, बाजरियो घी बीच।
दूधां संग जीमो दपट, खद बद पकियो खीच।।32।।
गरिमा इसड़ी गांव री, दाखी लक्ष्मण दान।
दीज्यौ वासो गांव दर, भव भव में भगवान।।33।।
अस्व-आभा
झमाल
गौ डरसट गजराज घण, वन्य जीव वनराज।
चौपायां में अस्व चित, तवूं आज सिरताज।।
तवूं आज सिरताज आभ अस्वांण री।
जाहर करूं जहांण क महिमा मांणरी।।
लखवे कीरत लोक थया घण थोकरां।
जंगम साथी जौर केकांणी कोखरा।।1।।
अंग न मोड़े आपरो, सुख दुख मैं रह संग।
कीरत जबर केकांण री, जबर जितावण जंग।।
जबर जितावण जंग वीर जण वासते।
मेढ़ीमणाज मीत साव रे सासते।।
कटक झटक ले जौर क ाणियां रा ाणी।
भा आच्छी भू लोक क सुरगां सोहणी।।2।।
जिणदल में घोड़ा जबर, नामी जेत निसांण।
रज खुर चढ़ घण राजरी, उड लागै असमाण।।
उड लागै असमांण ारा अरू ाूजवै।
सूरां वीरां संग, जंग में झूझवै।।
सवारी अरू सवार, खूब रण खेलवे।
उलट पड़े असमांण, जिका जिम झेलवे।।3।।
बणी चमूं जे तुरंग बिन, होकर रहसी हांण।
आदर पिन राखे असव, पराजय ज पहिचाण।।
पराजय ज पहिचाण, तोड़तां ताखड़ा।
साखी है संसार आदजुग आंकड़ा।।
हारज गयो हुलास उमंगा आंतवो।
बाजी बिन रण बीच भूल हर भांतवी।।4।।
घुड़साला अदगी घणी, उछालार उमंग।
भूरा काल जिम भंवर, चितकला अस चंग।।
चितवाला अस चंग कई चित काबरा।
हिणहिणाट हरखाय उमंगी आभरा।।
जिण घुड़साला जौर तिका रण जीत सी।
पाया रिजक रसाव मुलक्का मीत सी।।5।।
जिण घुड़साला में जबर, तांला लागा तंग।
काला कागज कूक वे, आला ठाला अंग।।
आला ठाला मंग टोठ ठकराईयां।
राज किता दिन रेय गरीबी गाईयां।।
हियो अमूझे हाय घुस्यां घुड़साल में।
ऐ किसड़ा उमराव जुटै रण जाल में।।6।।
आरत ना रहिया अवस, भारत कांो भार।
गारत करियो रिपु गरब, ऊंचा रथ आाार।।
ऊभारथ आाार, ारम नैं ाारियां।
कीरत गाय कवेस वतन तन वारियां।।
मुद्द पे लेवे समर जबर अस झूंझता।।7।।
वतन काठियावाड़ रा, कहत जबर केकांण।
अमर आज इल ऊपरै, कीरत रा कमठांण।।
कीरत रा कमठांण क चेतक चावसूं।
प्रसिद्ध रांण प्रताप दलां अस दाव सूं।।
दिपियो दुरगा दास सिवा रण सज्जिया।
अमर हुवो अमरेस छिता घण छज्जिया।।8।।
परम असव प्रताप सूँ, जित्यो बाबर जंग।
अकबर रो जस ूजलो, ओरंगजबे उमंग।।
ओरंगजेब उमंग कांा केकांण री।
जर्ह तक असवा जौर कमी नर्हं कांणरी।।
मगुलां कीरत मांय सायता साजवी।
आभ घणी असवांण छिता पर छाजवी।।9।।
पाबू जस पृथवी प्रगट ख्याती पाई खास।
घोड़ी लेवण नै घणी, आप करो अरदास।।
आप करी अरदास, कीरत कोड में।
अच बिच फेरां ऊठ जुटै रण जोड में।।
बचनां बंायिो वीर देवल देवियां।
रण पोडो थण रीझ सुकीरत सेवियां।।10।।
असव तणी असवारियां, नर भागी रे नाम।
बहतां मारग बीच में, सह देखे मुख साम।।
सह देखे सुख साम गाम तिय गोखरां।
चरचा करे चलया छोकरी छौकरां।।
मोटर कारां मौज इसी नर्ह आंणवे।
करी मौज केकांण जिका नर जांणवे।।11।।
परणी जण हिन्दु प्रथा, करी जरुत केकांण।
जावे तोरण बींद जद, असवारी असवांण।।
असवारी असवांण जचै घण जौर में।
बाजै राजा बींद, दीहता दौंर में।।
बिन घोड़ी रो बिंद लगे बद लोक में।
जिण ठिग घोड़ी जौर थवे घण थोक में।।12।।
असी र बींद चढ़ असव, चित में महिपत चेल।
तुरंग नृप तलवार रो, महि पर अदलो मेल।।
महि पर अदको मेल क सावां संचरै।
मुलकां सावां मांय, खूब रह खंचरै।।
सामेले सतकार क असुवां ओपवे।
जे बिन बाजी जाय क कन्या कोपवे।।13।।
बाजी सूं घर बीच में, घणा करे गुजरांण।
तांगे रथ जोते तिका, भागी पेट भरांण।।
भागी पेट भरांण एक ही आसरो।
बिन घोड़े बेकार हुवे घर हांस रो।
घोड़ां ससतो घास, रात दिन राल नै।
भाड़ै तांगै भाय, कडावे काल नै।।14।।
घोड़ां री नाहंी गिणत, करे आज सरकार।
आरथ पंथ इम ऊपजै, भारत बढ़तै भार।।
भारत बढ़तै भार, कहूं सरकार नैं।
समझो घोड़ां सीर बदाई बार नैं।।
घोड़ा घरां गरीब, दुखी है देसरा।
किंम भूलां केकांण क हितु हमेस रा।।15।।
धेन-धरम
दूहा
धुणिया मां धुनन्दा धर, सैलां मांय सुमेर।
कीरत श्रीखण्ड काननां, लाभ पसु गऊ लेर।।1।।
कामधेनु रे कारणै, हरख देवतां होय।
प्रतिदिन सुरजन पूजता, सतजुग आणंद सोय।।2।।
देता गायां दान में, द्वि लेता हित देख।
नीस्वारथ सेवा नखे, हुवा न आरत हेक।।3।।
दीधो हाथां देवता, माता सम सनमान।
सुर भी सुख साता सुणी, गौरव गाथा गान।।4।।
धारी सेवा धेनुवां, परम धम री प्रीत।
गाइ जै अभहूं घमआ, ग्वाल किसन रा गीत।।5।।
गायां र्‌चिछा में गयो, रे पाबू राठौड़।
अमर आज इल ऊपरै, सूरां में सिरमोड़।।6।।
धारण रिच्छा धेन री, तेजो गयो तुरंत।
कुल में थाई करीत, इला थका ना अंत।।7।।
देवे कन्या दान में, अजहूं गाय अनेक।
धेनु जिसड़ो दान धर, हुवे दान ना हेक।।8।।
रिच्छा करता राजवी, गायां री घणमान।
वपु दीधा गौ वासते, धरो लारलो ध्यान।।9।।
ऐ पन्ना इतिहास रा, गावे सुर भी गाथ।
लगी पुन्याई पेड़ बा, बदली अवतो बात।।10।।
काली धौली करीत, पीली लीली पूर।
गोरी चितकबरी गऊ, नामी धैनू नूर।।11।।
दूध स्वादो देवणी, लाखूं पीवे लोग।
बढै रोग ना वात रो, नामी काय निरोग।।12।।
राखां ज्यूं ही रेयले, सुख दुख में हिक साथ।
धेनु रे धणियाप री, बड़ी बखांवण बात।।13।।
नाखे थोड़ी नीरणी, परी खायलै पोख।
पांणी धाप र पौयनै, सुभी लै संतोख।।14।।
करती विचरण कांकड़ां, पाणी सरवर पाय।
सांझ होविया सदन में, उभै खूंटे आय।।15।।
चरी लेय कामण चली, दूवण धेनू दूध।
टांडै देख्यां टोगड़ो, कन्ने रहियो कूद।।16।।
धारोसमा फेना धवल, धणियाजी हिक धार।
बालक जोवे बाटड़ी, ऊन्नो करो अबार।।17।।
खावण दूधां खीचड़ो, दही कलवे दाय।
धिरत रोटियां में घले, प्रभा गाय पसाय।।18।।
गुणकारी गौमूत घण, और गणो उपयोग।
चरम रोग में चोपड़ो, नीमांसंग निरोग।।19।।
गोबर पोटा गाय रा, खात रालियां खेत।
अन उपजै धरती अदिक, भक्खार्यां भर देत।।20।।
सूख्यां पोटो सांत रो, ईनण हित उपयोग।
जोत जगे जगदम्बरी, थेपड़ियां घण थोग।।21।।
मुरड़ो गोबर मेल नै, नींपो भींत निकेत।
गरमी में नांहो गरम, सरदी कम संकेत।।22।।
झूंपड़ लागै जौर रा, छबी आंगणै छाप।
गौरां ऊभी गावड़ी, पुन्याी परताप।।23।।
करे किलोला केरड़ो, गायां उभी गौर।
अन धन रा है थाट इत, पुन्याई अठपौर।।24।।
जिणधर गायां री जबर, सेवा अर सतकार।
नर इसड़ा पूजनीक है, हिन्दू बोलण हार।।26।।
कोख गाय रा केरड़ा, बणिया जबरा बैल।
नागौरी ख्याती नसल, छिब नागौर छेल।।27।।
घर जायोड़ा गाय रा, पटके खेती पार।
जोतण हेत जमीन रो, बोल्यां कांधै भार।।28।।
देय मधीणो केक दिन, तीन महिनां तांण।
उगालै सूं आयणी, गाय करे गजुरांण।।29।।
जोबन हित दीधौ जबर, धन अन धणियां धैण।
बूढ़ापे संज्ञा बुरी, नाखे आंसूँ नैंण।।30।।
भूखां मरती रा भले, हाडक बैठ्यां हाय।
पड़ी बैसक्या जांपरी, टूंचा काग लगाय।।31।।
कर कर टूंचा कागला, करे लोही लुहाण।
गिरै रगत घर गाय रो, हिन्दु वांनै हांण।।32।।
भागी कीकर भूलगा, गायां रो उपकार।
सुख में रहतौ सांकड़ै, दुख में नाय दीदार।।33।।
तिरसी भूखी तावड़ै, कागा टूंचा खाय।
धिक् धिक् इसड़ी रा धणी, कोजा पाप कमाय।।34।।
तड़फ तड़फ मरगी तिकी, हां घट देती हा।
धणियां रो खूटो धरम, कोजा पाप कमाय।।35।।
सूनी छोडे स्वारथी, गायां नै सह गांव।
कांकड फसल उझाड कर, औछा सौठ उपाव।।36।।
फिरती देखे फालतू, बालदिया इण बैर।
कई आगरे कानपुर, लेगामारग लैर।।37।।
दोस विधर्मी ना दहो, अपणओदोस अपार।
सूनी मत छोडो गऊ, धीरधरम नै धार।।38।।
अन धन री आसा करां, गायां सूनी घाल।
काल पडै इण कारणै, होसी खोटा हाल।।39।।
विघन रोग धर वापरै, दर दर पडै दुकाल।
हाय लगी है गाय री, भायां करलो भाला।।40।।

पाकेट-प्रभा
दूहा
अगन बोट मरुधरा इला, भामी खेंचण भार।
पावे इण मांही प्रथम, ओठारू अधिकार।।1।।
ओठी उस्ट्र अदंतड़ो, अलहैरी अणियाल।
ईडरियो इकलासियो करसलियो कंठाल।।2।।
करह कछौ कमरी करभ, कंटक असल कमाल।
करहो किरियो, करहलो, चालै जबरी चाल।।3।।
कामड़ी कसो कूंटियो, करेलड़ो करहास।
कुरियो कुलचो क्रमेलक, कासलको कुलनास।।4।।
खीरज्योड़ो खाडालियो, गप गाजी गिड़कंध।
गोडाफोड़ घघरावड़ो, सिसुनामी सल सिंघ।।5।।
चढ्यो चाचौ चापलौ, जाखोड़ो जकसेस।
झूलण जमाज जोड रो, महिसा मरुधर देस।।6।।
टोडो टगरो टोरड़ो, डोलणियो डाचाल।
तोड तोरडो तोढ़ियो, प्रचंड पींडाढाल।।7।।
दोयकमुत दासेरको, दरगो दुरग दुगाल।
नैसारू वित्त नैणझर, बारगीर बंबाल।।8।।
पांगल पटेलपट्टाझर, पांसुभग पाकेट।
नैहटु फैणानाखतो, थलां पारवे थेट।।9।।
भूरो भरियो भूतहन, हडव चालौ हटाल।
लागट लुरियो लोहतड, क्रोधां मांही काल।10।।
सैंडो सरडो सांढियो, राफो रवण रिकाब।
बगरू बगली बोदली, ऊंटा हंदी आब।।11।।
करतो विचरण कांकडा, पूरो भरले पेट।
नीरण कमीत नाखतां, परवा ना पाकेट।।12।।
पांणी हेकर पिविया, ालै दो दिन ााप।
थलवट में बहतो थको, तड़फै नांही ताप।।13।।
जेठ रवी दौपार जित, दरखत पसुवां देख।
तपसी ज्यूं बहवे तिको, हां ओठारू हेक।।14।।
लूंवा तावड़ा लांघतौ, मरूार ग्रीखम मांय।
पार उतारण पामणा, आडो विपदा आय।।15।।
रेल घणी अलगी रहे, सड़कां नांय समीप।
थलवट में हिक ना थके, दिपतो औठी दीप।।16।।
तिरसो भूखो तावड़े, पार करावे पाथ।
रहवे आाीरात रात, साज मांद में साथ।।17।।
ारियो बोझ घणो ाणी, भर भर करियो भार।
चालै छकड़ा चाल में, औठारू इकसार।।18।।
मोड़ो होतां मालकां, चालै खाती चाल।
बगत ऊपरां बास में, गाजी देवे घाल।।19।।
टेसण सारू टोलियां, पूगै बगतां पैल।
छकड़ो अलगो छोड़ियों, सहरां लेवे सैल।।20।।
करे बटोलो कांकड़ा, सेंग अवेरे साख।
भरे अन्न भखारियां, नीरण बाड़ै नाख।।21।।
पींपा जिनसां पूगवे, थलवट ऊंटा पांण।
लड्डा खड्डी लायनैं, घणां करै गुजरांण।।22।।
बजरी रालै बस्तियां, लूंग नीरणी लाय।
पूरण नीर पखालड़ी, ऊंटा थलवट आय।।23।।
थार मरू थल मांयनैं, टोटो पांणी टंक।
पांच कोस ऊंटा परे, नित नित लाय निसंक।।24।।
दर दर पड़ै दुकालिया, बिरखा घण बिलखाय।
गुजर करांण गरीबियां, अरथ औठारूं आय।।25।।
केर नींम कंटालिया, खेज़़ड़ बंबल खाय।
मरुार ग्रीखम मांयनै, औठारू ाप आ।।26।।
पनड़ी मोठा मूँग री, लपकै खावे लूंग।
फलगट खाया व्हे फलजल, जती जंगलों र्जूंग।।27।।
बाड़मेर बीकांण में जोाांणै जैसांण।
सेखावाटी में सरब, औठारू औसांण।।28।।
मसती थलवट मांयनैं, मैदानां मजबूत।
पहाड़ा और पठार में, हालै बोझां हूंत।।29।।
तबीकट्ट सरदी तपत, भीज रयो बरसात।
कत्तारां बहवे किती, तारां छाई रात।।30।।
मूरी हाथां मांयनै, पीठां कियो पिलांण।
पग दै चढियां पागडै, ठावौ पाय ठिकांण।।31।।
घुघरिया बांौ गलै, रचियो वपु चितराम।
सिणगारै जण सीघड़ो, कोडे जाना काम।।32।।
नाकां घाल नकेल नै, जोबन सरद जमाज।
सरदी में खीजै सबल, गुरला काढै गाज।।33।।
राजी व्हे बहतो रहे, खेतां पाथां खास।
जड़ो जाखेड़ो जोड़ रो, बिगडो करे बिणास।।34।।
करो भरोसो ना कदै, भूलै ऊंट न बात।
मोको पायां मालकां, गाजी कर दे घात।।35।।
ऊंटा री जट आपणै, कासा आवे काम।
दल पटा ाूँसादरी, तल मजबूत तमाम।।36।।
टोलां बहवे टोरडां, बित बढ़ावण बेत।
बिपदां रोकड़ में बढ़े, हित रेबारी हेत।।37।।
कांकड़ में दिन काढ़वे, बातां सगली भूल।
रे बारीज राईका, टोलां में मसकूल।।38।।
सीमा पररहवे सजग, जुा कला घण जांण।
सैनां ऊंटा री सबल, थिर कीरत रज थांण।।39।।
दिपतैं भारतदेस में, लै जस सारां लोग।
उत्पादन परिवहन, में सुतराकस सहयोग।।40।।

कुटिल-करतूत
छन्द त्रोटक
बणणो पढ़णो दुरलभ्भ बणै।
छिब छैल पण कम उम्र छणै।।
पड़गा बद पाथ कुसंग कियां।
घटगो सनमांन कुठोड़ गियां।।1।।
दसतूर सराब तणो दरसै।
पर हाथ लियां झट यूं परसै।।
घट घूंट हलाहल री घिटणी।
सनमान सुमत्त गई सिटणी।।2।।
रट टाबरिया घर कूक रया।
परवा न करे बहवाय पया।।
परणी कर सोच निपोच पड़ी।
जद आय घरां पिव गाल झड़ी।।3।।
मद मस्त हुवै घर में मगतो।
अर काम करे न जियां अगतो।।
बिक जाय घरा गहणो बिनात।
पड़ियो कुरलावत खाट पिता।।4।।
नित नोकर पिवणिया नकटा।
छिप घूंस लहे चरमा छगटा।।
बकवास करे सहु ऑफिस बे।
कर यान परवो सहरां कसबे।।5।।
पड़ जाय सराब पियां पथ में।
हद बोतल और भरी हथ मेंं।
ाकि नाम रू काम इसा ाणियां।
मद जोबन मोस रही मिणियां।।6।।
नित भंग लही मत जांण नरां।
घुस जाय अनीत कुनीत घरां।।
लहराय इसा घण भोग लिया।
रट हांस कदै कद रोय रिया।।7।।
सुलफो नित सेवन ना सकरो।
टल अमल्ल दोस मती टकरो।।
सिगरेट बिड़ी दुख दे सगली।
बच जाय जिका गुणवान बली।।8।।
हथ चोरण चीज इसा हिलगा।
मगता नकटा सिटला मिलगा।।
सिर ाूड़ नखाय कुजलै सिड़ै।
चख देखत लोग आप चिड़ै।।9।।
दरसै न दया हरतां दमड़ी।
चल पाथ उोड़ लहे चमड़ी।।
घट पार कटार करे गलियां।
कर रोंद दहे खिलती कलियां।।10।।
तप तेज मिटा अबला तन रो.
मनहूंस कुकृत्य करे मन रो।।
मिलतां झट पाथ सुहाग मिटै।
गरलाँ भयभीत हुवाज घिटै।।11।।
इसड़ा जन ौसत देत इसी।
कर साम हुवे सरकार किसी।।
ानर खून बहाय रया ाुणियां।
करै बैठ चुपी सरकार कियां।।12।।
बणियाज कलंक इसा बतनां।
पड़िया बद पाथ तिका पतनां।।
नर्हं नेह ज मायड़ भौम नरां।
कर सम्पति राष्ट्र बिणास करां।।13।।
कर मोटर रेल बिणास करै।
हुय हीण मती ान बैंक हरै।।
जगै लूट कसोट करे झगड़़ा।
रहे ौसत गर्द तणा रगड़ा।।14।।
ऊग्र रूप लगावत है अगनी।
बरताव बुरो तनुजा भगनी।।
हथियार अनेक लियां हथ में।
पुरसां ाकि घात करे पथ में।।15।।
बिगड़ै इसडाज दुकान बलै।
करवावत नित्य नवीन कलै।।
हर हाट इसारिय बन्द हुवै।
दुबला सबला सह हाथ दुवै।।16।।
लड़ लोग डरा अनुदान लहे।
बरबाद करे बद पाथ बहे।।
ाकि आज नपुंसक लोग ारां।
किंम ाार लियो नर चूड़ करां।।17।।
सिर जूत पड़ै चुपचाप सहै।
दमड़ी ानिवादिय रूप दहै।।
पइसां हित बे.च दहे परणी।
ाकि बोझ बणे इसड़ा ारणी।।18।।
कर ााप अन्याव अनीत करै।
घुस जाय इसा पर नार ारै।।
मठ मन्दिर रोलत है मनड़ो।
तड़फै ान लेवण नै तनड़ो।।19।।
बदनीत बड़ी गुरुद्वार भलै।
छुपनैं ारमां उग्रावद छलै।
ार ाूड़ नखाय दहे ारमां।
कुटिलां करूतत इसी करमां।।20।।
पय सोम तणे बिस नाम पियो।
दसतूर इसी उग्रवाद दियो।
हठ मारग ले मजबूर हुवा।
दिल सूं धरमां प्रण देत हुवा।।21।।
बिणरे विपरीत ज बोल बणैं।
तिणरे छतियांज संगीन तणै।।
सिर घूमण काल लगै सटकै।
भयभीत हुवा जन यूँ भटकै।।22।।
सुण सासन घूज रयो सगलै।
टकरावत ना सबलोग टलै।।
मुलकै पईसां हित लोग मरै।
क्रमहीण हुवा बदनाम करै।।23।।
जलमे बिरथा झुक जाय जिका।
समलो जनता हिक होय सका।।
दुसटी करतूत मिटाय दहो।
सुणलो अब नांय अनीत सहो।।24।।
सुर संत रिखी सनमान सिरै।
गरिमा अब भारत केम गिरै।।
हम वीर नरां सनतान हठी।
कमजोर नहीं मजबूत कठी।।25।।
कुटिलां करतूत मिटाय करां।
धरमां मरजाद रखांण घरां।।
जुलमी डरजायज आय झुकै।
रचनात्मक कारज नांय रुकै।।26।।
दहणो सब आदर धर्म दिलां।
मुसलां सिख हिन्दुय मेल मिलां।।
अपणायत भारत देख इसी।
बणवे चहुं फरे न विस्व बिसी।।27।।
मत बोल कुबोल किने मनसी।
तलवार गिरा तण ना तनसी।।
जग झाल अडम्बर झूठ जणा।
गरबीज रया मन केम घणा।।28।।
हरि नाम हमेस लियां हरखो।
परिवारिय बंधण झूठ पखो।।
किरतार रटो सुद भी करणी।
तिण पार करे भव सूं तरणी।।29।।
सबसूं बढ़ मायड़ भौम सिरै।
फकिया चढ़ केम विदेस फिरै।।
कविया कवि लक्ष्मणदान कथै।
फहराय तिरंगिय ध्वज फतै।।30।।

पन्ना 12

 

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